कुछ दीवारें जिंदा रहेंगी मौत के आने तक;
तुम से मिलेंगे ख्वाबों में फिर नींद के आने तक|
ठहरी हुई सी शाम को अक्सर यादें आती है;
आधी रात गुजर जाती है, चाँद के आने तक|
दस्तीनों से लंबे हुये उन सापों के किस्से;
जिन को हम पाला करते है, काटे जाने तक|
एक ग़रीबी जुर्म हो जैसे घुट घुट मरने को;
और अमीरी जिंदा है जैसे ग़रीबों को खाने तक|
लाश कोई है चीख के कहती कत्ल हुआ हूँ मैं;
कातिल नेता पैसा से बोला जेल में जाने तक|
मंदिर न देगी मस्जिद न देगी एक निवाला भी;
देव न अल्लाह कोई नहीं इंसान हो जाने तक|
देखो 'मुसाफिर' तुम भी हो और हैं हम भी तो;
साथ चलें मोहब्बत से रहे फिर मौत के आने तक|
तुम से मिलेंगे ख्वाबों में फिर नींद के आने तक|
ठहरी हुई सी शाम को अक्सर यादें आती है;
आधी रात गुजर जाती है, चाँद के आने तक|
दस्तीनों से लंबे हुये उन सापों के किस्से;
जिन को हम पाला करते है, काटे जाने तक|
एक ग़रीबी जुर्म हो जैसे घुट घुट मरने को;
और अमीरी जिंदा है जैसे ग़रीबों को खाने तक|
लाश कोई है चीख के कहती कत्ल हुआ हूँ मैं;
कातिल नेता पैसा से बोला जेल में जाने तक|
मंदिर न देगी मस्जिद न देगी एक निवाला भी;
देव न अल्लाह कोई नहीं इंसान हो जाने तक|
देखो 'मुसाफिर' तुम भी हो और हैं हम भी तो;
साथ चलें मोहब्बत से रहे फिर मौत के आने तक|
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-06-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2017 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
दो साल लगेंगे चर्चा को!? बड़ी जबरदस्त प्लानिंग है।
Deleteशायद टाइपिंग की गलती है|
Deleteदिलबाग जी आभार|
Deleteक्या खूब!
ReplyDeleteसहृदय आभार|
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