जिन्हे मैं अब भी समझता हूँ मेरे गैर नहीं.
सुकून छीनता है जो अब भी मेरे दिल का;
वही जालिम है समझता हूँ कोई गैर नहीं.
मैं अब बताउँ जमाने को, तो बताउँ क्या;
मेरा मुंसिफ, मेरा कातिल, है मेरा गैर नहीं.
अजीब दौर से गुजर रहा हूँ जिंदगी के मैं;
कटा हुआ है, मेरा हिस्सा, है कोई गैर नहीं.
(कट के मुझ से अलग हुआ, है कोई गैर नहीं.)
दर्द मिला है 'मुसाफिर' जो जिंदगी के सफ़र में;
अब तो वो दर्द भी अपना है, है कोई गैर नहीं.
Marvellous.Wonderful lines.
ReplyDeleteMarvellous.Wonderful lines.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार!!!
Deleteबहुत उम्दा ,सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteLATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
latest post मंत्री बनू मैं
बहुत बहुत आभार!!!
DeleteI have only one word in my mind..awesome :)
ReplyDeleteThank you!!
Deleteखूबशूरत अहसास
ReplyDeleteआभार!!!
Deleteचर्चा मंच पर लोगों से साझा करने के लिए आभार !!!
ReplyDeleteसभी पंक्तियाँ खूबसूरत हैं
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