तेरे पहलू से जो उठ गया हूँ मैं.
आईना देखता हूँ, मैं तुझको पाता हूँ;
कि नज़र हो तेरी, और बयाँ हूँ मैं.
अपना साया भी तो अपना न रहा;
बिछुड़ के तुझसे यूँ तन्हा हूँ मैं.
ज़ख्म तेरा हो या मेरा हो;
अपने इस दिल मे जी रहा हूँ मैं.
है 'मुसाफिर', है मोहब्बत का सफ़र;
आश है तेरी तो चल रहा हूँ मैं.