Thursday, 14 July 2011

वो प्यार कहाँ रे.............


बरसे हैं मेरे नयन
पर बहार कहाँ रे
तूँ जो मुझसे कहता था
वो प्यार कहाँ रे.

नयनन स्नेह रस
झर-झर जाए
तुझको मेरी सुध कहाँ
वो प्यार कहाँ रे.

मैं जागा रात भर
तू सोये नींद भर
जागी जागी रातों का
वो प्यार कहाँ रे.

11 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति , आभार

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  2. बहुत ही मार्मिक पर एक बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !

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  3. बधाई ||

    थोडा घूमने की आदत डालो |
    मन बहल जाएगा ||

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  4. मामला कुछ और ही लगता है .....................सुन्दर रचना

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  5. @दिनेश जी घूमता रहता हूँ.
    जब भी मौका मिलता है.
    दिल का पता नही होता कहाँ लगे कहाँ न लगे.

    @रेखा जी मामला कुछ और नही है,
    बस एक एहसास है, बयाँ कर दिया.

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  6. वियोग श्रृंगार की अच्छी रचना........

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  7. बेहतरीन।
    --------
    कल 08/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. जागी जागी रातों का वह प्यार कहाँ रे
    क्या अंदाज है अपनी बात कहने का .....!

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  9. स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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