बरसे हैं मेरे नयन
पर बहार कहाँ रे
तूँ जो मुझसे कहता था
वो प्यार कहाँ रे.
नयनन स्नेह रस
झर-झर जाए
तुझको मेरी सुध कहाँ
वो प्यार कहाँ रे.
मैं जागा रात भर
तू सोये नींद भर
जागी जागी रातों का
वो प्यार कहाँ रे.
पर बहार कहाँ रे
तूँ जो मुझसे कहता था
वो प्यार कहाँ रे.
नयनन स्नेह रस
झर-झर जाए
तुझको मेरी सुध कहाँ
वो प्यार कहाँ रे.
मैं जागा रात भर
तू सोये नींद भर
जागी जागी रातों का
वो प्यार कहाँ रे.
सुंदर प्रस्तुति , आभार
ReplyDeleteविरह का अद्भुत चित्रण!!
ReplyDeletebeautifully written.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक पर एक बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteबधाई ||
ReplyDeleteथोडा घूमने की आदत डालो |
मन बहल जाएगा ||
मामला कुछ और ही लगता है .....................सुन्दर रचना
ReplyDelete@दिनेश जी घूमता रहता हूँ.
ReplyDeleteजब भी मौका मिलता है.
दिल का पता नही होता कहाँ लगे कहाँ न लगे.
@रेखा जी मामला कुछ और नही है,
बस एक एहसास है, बयाँ कर दिया.
वियोग श्रृंगार की अच्छी रचना........
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDelete--------
कल 08/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
जागी जागी रातों का वह प्यार कहाँ रे
ReplyDeleteक्या अंदाज है अपनी बात कहने का .....!
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
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