रास्ते का पत्थर,
निखरा है, कितनी
ठोकरें खाकर।
जो,
ठिठुरता ठंड में,
तपता है, कड़क
धूप में, अजर।
वो,
घूमता एक दिन,
पहुँचा शिवालय,
हो बच्चे के कर।
वो,
मुस्कुराता वक्त पे,
और कभी फिर ,
इस भाग्य पर।
जो,
ठोकरे दे कर गए,
वो मिलें हैं, देखो
सर झुका कर।
निखरा है, कितनी
ठोकरें खाकर।
जो,
ठिठुरता ठंड में,
तपता है, कड़क
धूप में, अजर।
वो,
घूमता एक दिन,
पहुँचा शिवालय,
हो बच्चे के कर।
वो,
मुस्कुराता वक्त पे,
और कभी फिर ,
इस भाग्य पर।
जो,
ठोकरे दे कर गए,
वो मिलें हैं, देखो
सर झुका कर।