Wednesday, 29 June 2011

रास्ते का पत्थर

वो,
रास्ते का पत्थर,
निखरा है, कितनी
ठोकरें खाकर

जो,
ठिठुरता ठंड में,
तपता है, कड़क
धूप में, अजर

वो,
घूमता एक दिन,
पहुँचा शिवालय,
हो बच्चे के कर

वो,
मुस्कुराता वक्त पे,
और कभी फिर ,
इस भाग्य पर

जो,
ठोकरे दे कर गए,
वो मिलें हैं, देखो
सर झुका कर

Saturday, 11 June 2011

प्यार के सूखे हुए फूल

कुछ दिनों शहर से बाहर था अतः नयी रचना आने में कुछ देरी हो गयी

प्यार के सूखे हुए फूल हैं कताबों में अभी;
रौशनी उम्मीद की है दिल के चरागों में अभी।

मैं जल रहा हूँ कि जलना है मुकद्दर में मेरे;
बस तेरे प्यार के मरहम की जरूरत है अभी।

गैर तुझको मैं समझूं ये तो न मुमकिन है;
मुझको तूँ अपना बना ले ये रास्ता है अभी।

खोज ही लूँगा तुझे मैं बहता हुआ एक दरिया हूँ;
प्यास मुझमें समंदर कि जो बाकी है अभी।

मैं मर गया भी तो बस देखना ये चाहूँगा;
कि मैं मर के भी तुझमें कही बाकी हूँ अभी।

जीवन सफ़र

 सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र  रास्तों के काँटे अपने  अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...