Saturday, 1 April 2017

ज़िंदगी कम है क्या कि मौत की कमी होगी

दुबारा इश्क़ की दुनिया हरी भरी होगी
वो मिल भी जाए तो क्या अब मुझे ख़ुशी होगी - © भाई Irshad Khan Sikandar

अंधेरों के बाद, फिर जो रोशनी के साथ
मिल भी गए तो क्या पहले जैसी ख़ुशी होगी

दुनिया दूर से ख़ूबसूरत जो बहुत है
पास जाने पर भी क्या उतनी ही हँसी होगी

ज़माना पहले अलविदा कहा था जहाँ
अगली मुलाक़ात भी क्या वहीं होगी

आँखो का अश्क़ जो मोहब्बत में ठहर जाता है
तो वक़्त को भी क्या महसूस वो नमीं होगी

तुम सफ़र में हो 'मुसाफ़िर' पूरा कर ही लो
ये ज़िंदगी कम है क्या कि मौत की कमी होगी

3 comments:

  1. बहुत खूब ... दुनिया दूर से जितनी खूबसूरत है ... काश पास आने से उतनी ही हो ...
    लाजवाब शेरोन से सजी ग़ज़ल है ... बहुत कमाल ...

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  2. आभारी हूँ हमेशा ही, समय पर उत्तर न दे पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

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  3. आभारी हूँ हमेशा ही, समय पर उत्तर न दे पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

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