Wednesday, 24 June 2015

कुछ दीवारें जिंदा रहेंगी मौत के आने तक

कुछ दीवारें जिंदा रहेंगी मौत के आने तक;
तुम से मिलेंगे ख्वाबों में फिर नींद के आने तक|

ठहरी हुई सी शाम को अक्सर यादें आती है;
आधी रात गुजर जाती है, चाँद के आने तक|

दस्तीनों से लंबे हुये उन सापों के किस्से;
जिन को हम पाला करते है, काटे जाने तक|

एक ग़रीबी जुर्म हो जैसे घुट घुट मरने को;
और अमीरी जिंदा है जैसे ग़रीबों को खाने तक|

लाश कोई है चीख के कहती कत्ल हुआ हूँ मैं;
कातिल नेता पैसा से बोला जेल में जाने तक|

मंदिर न देगी मस्जिद न देगी एक निवाला भी;
देव न अल्लाह कोई नहीं इंसान हो जाने तक|

देखो 'मुसाफिर' तुम भी हो और हैं हम भी तो;
साथ चलें मोहब्बत से रहे फिर मौत के आने तक| 

जीवन सफ़र

 सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र  रास्तों के काँटे अपने  अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...