जाने फिर क्यूँ मुझे वो याद आया;
जाने फिर क्यू ये ख़याल आया.
जिस्म दो हैं, उसका और मेरा;
जिसमें बसता है एक ही साया.
सुबह और शाम एक ही तो है;
बस ज़रा वक़्त का फासला पाया.
बेमियादी चाहतो का मतलब;
तो मौत के बाद ही समझ आया.
जब भी उसकी याद से लिपटा;
मैं खुद का कहाँ फिर रह पाया.
जितना दौड़ा पहुँचने को उस तक ;
खुद को उतना ही दूर मैं पाया.
मोहब्बत तो फकीरी से ही जिंदा है;
'मुसाफिर' चाहकर न ज़ी पाया.