Saturday, 19 December 2015

प्रेम-वासना

प्रेम
निर्लज्ज कर देता है
स्त्री को
खोल देती है अपना स्तन
अपने बच्चे के लिये
चलती ट्रेन या बस में

वासना
निर्लज्ज कर देती है
पुरूष को
वो नापने लगता है
उभार गोलाई और तन्यता

प्रेम
निर्लज्ज कर देता है
एक वृद्ध पुरूष को
चूम लेता है वो
पत्नी को
सब के सामने

वासना
निर्लज्ज करती है
पुरूष को
और वो नग्न हो कर
हो जाते है वासना रत
सागर तट या पार्क बेंच पर

अन्तर है
प्रेम और वासना से उपजी
निर्लज्जता में

पर पहले
समझना होगा
प्रेम और वासना को



जीवन सफ़र

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