Wednesday, 17 August 2011

मेरे कातिल


पास कातिल मेरे मुझमें जान आने दे,
जान ले लेना पर थोडा तो संभल जाने दे।

तू तसव्वुर में मेरे रहा है बरसों से,
खुद को नजरों से सीने में उतर जाने दे।

कुछ ठहर जा कि छुपा लूँ मैं दर्द सीने का,
या तेरे सीने से लिपट कर बिफर जाने दे।

तुझको पाना नहीं है मेरी मंजिल,
तू जरा खुद में मुझको समां जाने दे।

अब गुजारिश है 'मुसाफिर' की खुदा से,
वो मुझे मेरे खुदा से ही मिल जाने दे।

जीवन सफ़र

 सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र  रास्तों के काँटे अपने  अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...