Thursday, 28 February 2013

आदमी भी बिक रहा है














हमारे बाजार बड़े हुए हैं 
खरीद फ़रोख़्त बढ़ गयी है
अब तो आदमी भी बिक रहा है
और उसका जमीर भी
सिक्के भारी होते थे
फिर भी नहीं खरीद पाते थे आदमी को
या कि उसके जमीर को
ये नया दौर है
वक़्त की तराजू में तौल दिए जाते है
हलके नोटों के बदले
हलके होते आदमी और उनका जमीर

5 comments:

  1. वाह क्या बात है

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    1. बहुत बहुत आभार मनु जी !!!

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  2. बहुत खूब भाई ! बहुत खूब युग बदल गया है आदमी भी और हो गया है .

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    1. जी बहुत कष्टकारी है ये सब!!!

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  3. अच्छी कविता है

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