प्रेम जैसे कोई सीमा कोई 
परिधि मानता ही नहीं
जैसे सागर के लिए नदी 
हज़ारों हज़ारों मील चल कर आती है
जैसे गुरु बुला लेता है 
आपने शिष्य को दूर से 
और समय काल और दूरियों से परे
रखता है अपने साये की तरह
जैसे प्रेम में
पुरुष और प्रकृति (स्त्री)
में मिट जाता है भेद 
ऐसे जैसे अनंत और शून्य एक ही हो 
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