Sunday, 4 October 2015

बाँधते बाँधते ज़िंदगी में बिखर जाते है

बाँधते बाँधते ज़िंदगी में बिखर जाते है,
याद आये जो तुम अश्क़ ये ढ़ल जाते है।

तुम मोहब्बत में या समंदर में डूबो,
ढूँढो तो हाथ में मोती ही बस आते है।

गिर के उठना, फिर गिर के सम्हालना,
वक़्त के साथ ये हुनर सीख ही जाते है।

बाँधते छूटते अरमानों के धागे है ये,
हर एक मोड़ पर तन्हा ही तो रह जाते है।

ज़िंदगी बदले चाहे कितने मोड़ भी लेकिन,
सफ़र हो तन्हा, 'मुसाफ़िर' ही कहलाते है।

No comments:

Post a Comment