गईया बछरुआ मोहे मन भाए ...
कि जाने कौने माटी से बनल ई देहिया ...
जबे हम सोची इहे मन आवे ...
जाने कौने माटी मे मिलि जाई देहिया ...
तानिको न भाए मोहे ई दुनिया ..
भागी के जाई तो जाई कहाँ देहिया ....
जाने कइसन आतमा कइसन परमातमा ..
देहिये के भेद ही न जाने इ देहिया ...
सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज मंगलवार (10-09-2013) को मंगलवारीय चर्चा 1364 --गणेशचतुर्थी पर विशेषमें "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
आप सबको गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार!!!
Deleteज्यादे लोगों से साझा करने के लिए धन्यवाद्!!
ई देहिया से पीछा चुडावल तनि मुश्किल दिखत बा … बड़ा सुन्दर प्रस्तुती।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार!!!
Delete