Friday, 14 December 2012

चार आँखें थीं वो

चार आँखें थीं वो
लगता था तस्वीर से बाहर निकल कर
सीधे भीतर झाँक रहीं हों अंतस तक
दो आँखे उम्र दराज थी
पर गजब की चमक थी अनुभव की शालीनता की
दो बिल्कुल युवा आँखे थी
उनमें चमक थी भविष्य के भीतर झाँकने की
अपने संबल से भविष्य रचने की
पर एक समानता थी दोनो में
दोनो ही जैसे सामने वाले के भीतर झाँक लेती हों
और सहसा ही स्तब्ध करती है मन को
जैसे सब को खुद से जोड़ लेना चाहती हों
पर अगले ही पल एक निर्मल एहसास
सुख और शांति

10 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति बोलती आँखे

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  2. लोगों तक रचना पहुंचाने के लिए बहुत बहुत आभार!!!!

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  3. आकस्मिक ही होता है जो कुछ होता है बदलाव लाने वाला .सघन अनुभूति की रचना .

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  5. शुक्रिया दोस्त आपकी उद्देश्य पराक टिपण्णी का .हमारी धरोहर है आपकी कही .

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  6. शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .

    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 खबरनामा सेहत का



    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 दिमागी तौर पर ठस रह सकती गूगल पीढ़ी

    स्पेम में गईं हैं टिप्पणियाँ भाई साहब .

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  7. यहाँ मुंबई में इफरात से आता है शरीफा .आभार आपकी टिपण्णी का .

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  8. दुग्धाहार , ,गाय ,गंगा और मातृभूमि

    http://veerubhai1947.blogspot.in/

    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    बृहस्पतिवार, 17 जनवरी 2013

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