आग-ए-दिल से धुआँ उठता ही नहीं;
दिल का जलना नज़र आता ही नहीं.
आईना झूठ हो गया मेरा ;
चेहरा उसका ये दिखाता ही नहीं.
साफ़ दिल पाक भी है मेरा;
बाद उसके कोई भाता ही नहीं.
गैर मुमकिन था जमाना बदले;
रवायतें मैं भी निभाता ही नहीं.
ये है तन्हा सफ़र 'मुसाफिर' का;
हमसफ़र साथ वो आता ही नहीं.
बदलते चेहरों के मौसम में हर वक्त,
ReplyDeleteजरबरी है नजर के सामने आईना रखना।
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।
प्रणाम
Deleteसहृदय प्रेम और आभार ...............
आपके ब्लॉग से जुड़ गया हूँ और आपसे भी.
आपके अद्भुत लेखन को नमन,बहुत सराहनीय प्रस्तुति.बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
बहुत बहुत आभार!!!!!!!
Deleteजी बस बड़े लोगों का आशीर्वाद है!!!!!
बहुत बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
प्रणाम
Deleteसहृदय आभार !!!
बहुत बढिया
ReplyDeleteशुक्रिया वरुण जी !!!
Deleteआभार !!!
ReplyDelete