Friday, 14 December 2012

चार आँखें थीं वो

चार आँखें थीं वो
लगता था तस्वीर से बाहर निकल कर
सीधे भीतर झाँक रहीं हों अंतस तक
दो आँखे उम्र दराज थी
पर गजब की चमक थी अनुभव की शालीनता की
दो बिल्कुल युवा आँखे थी
उनमें चमक थी भविष्य के भीतर झाँकने की
अपने संबल से भविष्य रचने की
पर एक समानता थी दोनो में
दोनो ही जैसे सामने वाले के भीतर झाँक लेती हों
और सहसा ही स्तब्ध करती है मन को
जैसे सब को खुद से जोड़ लेना चाहती हों
पर अगले ही पल एक निर्मल एहसास
सुख और शांति

Tuesday, 4 December 2012

आईना झूठ हो गया मेरा


आग-ए-दिल से धुआँ उठता ही नहीं;
दिल का जलना नज़र आता ही नहीं.

आईना झूठ हो गया मेरा ;
चेहरा उसका ये दिखाता ही नहीं.

साफ़ दिल पाक भी है मेरा;
बाद उसके कोई भाता ही नहीं.

गैर मुमकिन था जमाना बदले;
रवायतें मैं भी निभाता ही नहीं.

ये है तन्हा सफ़र 'मुसाफिर' का;
हमसफ़र साथ वो आता ही नहीं.