पथ का राही
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Friday, 15 April 2011
प्यास
उनकी
आँखे
तो
एक
समंदर
है
,
पर
कित
ने
मौसम
की
प्यास
बैठी
है
।
अपने
सागर
से
मिलने
को
,
कितनी
ही
नदियाँ
उदास
बैठी
है
।
2 comments:
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
15 April 2011 at 06:38
यह तो बहुत ही जानदार शेर लिखा है आपने!
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musafir
15 April 2011 at 07:01
सब उसकी मेहरबानी है.
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यह तो बहुत ही जानदार शेर लिखा है आपने!
ReplyDeleteसब उसकी मेहरबानी है.
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