पथ का राही
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Thursday, 14 April 2011
एहसास
मुझे पता न था, कि हम इतने सताये होगे;
कल जो अपने थे, वही लोग पराये होगे।
जिन्दगी सिखा ही देती है, जीने का अदब;
क्या पता हमने, कितने गम-खाये होगे।
2 comments:
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
14 April 2011 at 05:01
बहुत बढ़िया!
लगता है गहरी चोट खाए हो!
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संजय भास्कर
4 May 2011 at 23:04
सार्थक और भावप्रवण रचना।
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बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteलगता है गहरी चोट खाए हो!
सार्थक और भावप्रवण रचना।
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