Tuesday, 29 September 2020

तुम्हारा प्रेम

 तुम्हारा प्रेम,

अगर निश्छल और निस्पृह नहीं है, 

तो सचेत होकर गौर से देखना, 

वो किसी और के पहले तुम्हें बांध रहा होगा।


तुम्हारा प्रेम, 

अगर किसी को उन्मुक्त आकाश न दे सका, 

तो वह तुम्हें स्वयं में स्वतंत्रता की ज़मीन न दे सकेगा।


फिर तुम दौड़ते रहना, 

जन्म जन्मांतर,

प्रेम के इतर, 

प्रेम के नाम पार बनाई हुई मृगमरीचिका के लिये। 

Thursday, 30 July 2020

ओ मेरे रफ़ूगर

(१)
ओ मेरे रफ़ूगर,
अगर हो सके तो,
सिल भी दे ये चाक-ए-जिगर।

ऐ मेरे हक़ीम,
है सब कुछ बेअसर,
कुछ तो मर्ज़ की दवा कर।

ओ हमसफ़र,
मंज़िल होती है बिलकुल अकेली,
अब तो तूँ रास्ता बन साथ यूँ ही चला कर।

(२)

ज़रूरी नहीं है
तुम हाथ बढ़ाओ
तो एक हाथ का साथ मिले
कई बार, बार बार अपना हाथ खींच लेने वाले लोग
ये एहसास दिला जाते हैं
प्रेम तुम्हारे भीतर ही था, है, और रहेगा
ख़ुदा के लिये, खुद के लिये और यूँ ही सब के लिये

(३)
किसी को चाहने की भी एक उम्र होती है
और कई बार ये उम्र जन्मों में गिनी जाती है
फिर आप खुद को चाहने लगते है
और ये खुद जो चाहना
ख़ुदा और उस की पूरी कायनात को चाहने जैसा है 

Friday, 17 July 2020

कवि १/२

(१)
लोक जन की बात न कह पाने वाला
ज़मीन पर लड़ाई न लड़ पाने वाला कवि
उस सुनहरी मोटी जिल्द वाली किताब की तरह होता है
जिस का अंत किताबों की सजी अलमारी से शुरू
और परिणति रद्दी में बदलने से होता है
(२)
किसान की जीवटता
उस के संघर्षों की कहानी की माला में गुथी होती है
और उस की आशावान होना खेतों में अनाज के बर्बाद होने पर
दुबारा बीज के बो देने में जीवंत हो उठती है
उस की जीवटता और आशावादित के दम पर
जीता, उस की आवाज़ न बन पाने वाला
भीतर से मरा हुआ इंसान
अफ़सर, राजनेता, कवि
और जाने क्या क्या होता है

Friday, 10 July 2020

शास्वत प्रेम

प्रेम के इतर सारी भावनायें
तिरोहित हो जाती हैं
समय के साथ बचा रहता है प्रेम

शरीर तक ही सीमागत है
वासना
शरीर के सीमा में सब नश्वर है
प्रेम अनंत आकाश की सीमा में है 

शास्वत हमेशा हमेशा

मृत्यु और जीवन के परे

हाँ जब मुझ से कहे सारे शब्द तुम्हारी प्रार्थना में होंगे
और मुझ से पैदा संगीत तुम्हारा ही संगीत होगा
और की सारे राग और गीत तुम्हारे मेरे प्रेम से लय बद्ध होंगे

हाँ जब तुम्हारा होना मेरा अस्तित्व होगा
और मेरा होना तुम्हारा ही विस्तार

तब मैं मृत्यु और जीवन के परे
उस अनंत यात्रा पर होऊँगा
जो आदि से आदि तक रहेगा

Friday, 19 June 2020

Are we already dead?

Are we already dead? 
Even before we could sought
That the knee is on our neck
Or we already dead in a sense 
That we are not able to realize the pain
When will we realize that
Their knee is on our neck 
Corrupt political system putting pressure on neck
Corrupt social system making it difficult to breath
The rich have tightened their grip on poor’s neck
The cast and religious supremacy had made us killer 
The false cultural and nationalist ego made our mind blind 
Before being dead we need to realize some one else’s  knee is on our neck 
Before being dead, we have to realize where our knee is?
Before being dead, by putting our knee to others neck
Before being dead, by someone else’s knee on our neck 
Be sensitive be loving and caring 
Before giving pen to your children 
Give them paint and brush 
Let them dance and play music 
Let them have a life before being dead
To let them take their last natural breath 
with freedom of mind and soul 

Tuesday, 18 February 2020

प्रेम नहीं मानता कोई सीमा

प्रेम जैसे कोई सीमा कोई 
परिधि मानता ही नहीं
जैसे सागर के लिए नदी 
हज़ारों हज़ारों मील चल कर आती है

जैसे गुरु बुला लेता है 
आपने शिष्य को दूर से 
और समय काल और दूरियों से परे
रखता है अपने साये की तरह

जैसे प्रेम में
पुरुष और प्रकृति (स्त्री)
में मिट जाता है भेद 
ऐसे जैसे अनंत और शून्य एक ही हो 

Saturday, 18 January 2020

शृष्टि में निरंतर प्रवाहित प्रेम

अभिभूत हूँ उस प्रेम से,
जो घटित हुआ एक पल में,
और जीवंत रहेगा, सदियों तक।

एक अपरिचित का प्रेम,
उस के पलकों के कोरों पर रुके,
अश्रु के दो बूँद,
जो उस के चेहरे पर सरकने से पहले,
उतर चुके थे मेरे हृदय पर प्रेम बन कर।

वो भाव जो उस के चेहरे,
आँखों में देख सकता था,
उस के चेहरे पर पढ़ सकता था,
वो उस का मेरे ओर हाथ बढ़ाना,
प्रेम ऊर्जा का हृदय तक पहुँच जाना।

सब घटित होता है, उस पल में,
बिना किसी अपेक्षा के,
बिना किसी कर्ता भाव के,
प्रेम यूँ ही घटित होता है निश्छल,
शृष्टि में निरंतर प्रवाहित प्रेम।

© Gyanendra Tripathi