Monday, 13 May 2019

मुझे बता देना

तुम्हें कहीं अगर मिल जाऊँ मैं,
तो मुझे बता देना।

रात के किसी उजियारे में,
दिन के किसी अँधियारे में,
तुम्हें कहीं अगर मिल जाऊँ मैं,
तो मुझे बता देना।

पर्वत झील पहाड़ नदी या,
जीवन के भीतर गलियारे में,
तुम्हें कहीं अगर मिल जाऊँ मैं,
तो मुझे बता देना।

और कहीं जो ठहर सके तुम,
गहरे भीतर मन के द्वारे,
तुम्हें कहीं अगर मिल जाऊँ मैं,
तो मुझे बता देना।

© Gyanendra

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-05-2019) को "आसन है अनमोल" (चर्चा अंक- 3335) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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