Monday, 10 April 2017

मृत्यु तुम से बिना डरे

हाँ किसी रोज़
देखना चाहता हूँ
सुंदर संगीत

किसी रोज़ सुनना चाहता हूँ
किसी की
सुंदर चित्रकारी

किसी रोज़
जी लेना चाहता हूँ
प्रेम में लिखी कविता को

किसी रोज़ भटकना चाहता हूँ
कहानियों की
भूल भुलैया में

बतियाना चाहता हूँ
पास से गुज़रती हुई
छू जाती हवा से

महसूस कर लेना चाहता हूँ
सागर की लहरों को
मन में उठते तरंगों की तरह

और कभी ख़ुद को ख़ुद के भीतर
खींचकर पैदा कर देना चाहता हूँ
सितार का संगीत

और साँसों को एक शांत
अंधेरी रात को
एकांत में ठहरे देखना चाहता हूँ

हाँ मृत्यु, तुम से बिना डरे
जीवन जैसा ही मिलना चाहता हूँ
मैं तुम से

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