पथ का राही
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Thursday, 28 July 2016
ज़िंदगी जैसे ऊन का गोला
ज़िंदगी जैसे ऊन का गोला
एक सिरा पकड़ कर
हम उलझ जाते हैं
ताना बाना बुनने में
और बुनते उलझते
कब आख़िरी सिरा आ जाता है
पता ही नहीं चलता
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