दिल का हाल बयाँ आँखो से कर देते हो.
बिन बोले कह देते हो कि तुम कैसे हो;
तुम अब तक घर की दीवारें देख रहे हो;
मुझ से मिलो ये तो पूंछो 'तुम कैसे हो'.
चेहरा मेरा देखोगे, न समझ सकोगे;
देखो दिल फिर न पूंछोगे 'तुम कैसे हो'.
कोई 'मुसाफिर' ही मंज़िल तक पहुँचेगा;
तुम राहों से उनका मुक़द्दर पूंछ रहे हो.
श्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत बहुत आभार!!!
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