'अज्ञेय' की
समझ नहीं आता
या कि मैं समझना नहीं चाहता
कि बुद्धि के स्तर पर समझते हुए
कहीं छूट न जाये उनका मर्म
क्यों कि कोई रास्ता नहीं है
बुद्धि से हृदय तक.
करवाचौथ की हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (03-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
करवाचौथ की हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (03-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
आभार!!!
ReplyDeleteप्रणाम
हृदयस्पर्शी ..... सीमित शब्द पर कितनी गहरी बात
ReplyDeleteआभार मोनिका जी!!!
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ReplyDeleteसौहाद्र का है पर्व दिवाली ,
मिलजुल के मनाये दिवाली ,
कोई घर रहे न रौशनी से खाली .
हैपी दिवाली हैपी दिवाली .
वीरुभाई
सौहाद्र का है पर्व दिवाली ,
ReplyDeleteमिलजुल के मनाये दिवाली ,
कोई घर रहे न रौशनी से खाली .
हैपी दिवाली हैपी दिवाली .
वीरुभाई
जो बूझा न जा सके वही तो है अ -ज्ञेय
निज भाषा उन्नति अहो ,सब उन्नति को मूल ,
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को
ReplyDeleteजो बूझा न जा सके वही तो है अ -ज्ञेय
जी बिलकुल सही कहा आपने.
Deleteप्रभावशाली रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार संजय जी !!!
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