Tuesday, 25 September 2012

कब चाहा पंख और ख्वाब गगन

जाने कब कैसे ख्वाबों के पंख मिले;
जाने कब कैसे उड़ाने की चाह मिले.

जब-जब जीवन से इस पर तकरार हुई है;
मुझको जीवन से बदले में आह मिले.

मैं ने कब चाहा पंख और ख्वाब गगन के;
मैं ने चाहा टूटे दिल को बस एक राह मिले.

जब भी मैं ने यह सवाल किया जीवन से;
बदले में एक और दर्द और एक आह मिले.

17 comments:

  1. ram ram bhai
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    मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
    आधे सच का आधा झूठ

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    1. सहृदय आभार!!!!
      प्रणाम स्वीकार करें.

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  2. achchhee rachna ,par jindagi mein sangharsh to hota hi hai--raah jaroor miltee hai

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  3. जी सही कहा आपने.
    ये एक मनः स्थिति की अभिव्यक्ति है.

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  4. बहुत अच्छा लिखा है आपने ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आई ---मैंने कब चाहा पंख और ख्वाब गगन के
    मैंने चाहा टूटे दिल को बस एक राह मिले

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    1. आप का सहृदय अभिवादन!!!!
      आप का आशीर्वाद मिलता रहे!!!!

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  5. बेहद भाव पूर्ण ...जीवन के अनुभवों सुख दुःख की धूप छाँव को उकेरती कब्यांजलि...
    आभार !!

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    1. आप को रचना अच्छी लगी इसके लिए सहृदय आभार!!!
      ये अनुभूति हमारे आप के सभी के दिल मे कभी न कभी तो आती ही है.

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  6. हमारी अभिव्यक्ति को लोगों तक पहुँचाने के लिए, आभार!!!
    नयी पुरानी हलचल का प्रस्तुतिकरण बहुत सुंदर है.

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  7. वाह.....
    बेहद खूबसूरत रचना...
    सुन्दर एहसास....

    अनु

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    1. सहृदय आभार अनु जी!!!!

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  8. ek rah zaroor milegi......ummeed rakhen,tabhi jee payenge.....

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    1. उम्मीद पर तो दुनिया कायम है.
      आभार!!!

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  9. सुंदर प्रस्तुति |
    इस समूहिक ब्लॉग में आएं और हमसे जुड़ें |
    काव्य का संसार

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    1. आभार !!!!
      http://kavyasansaar.blogspot.in/
      visit kiya aur wahan samarthak soochi me juda hoon.

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