Tuesday, 25 September 2012

कब चाहा पंख और ख्वाब गगन

जाने कब कैसे ख्वाबों के पंख मिले;
जाने कब कैसे उड़ाने की चाह मिले.

जब-जब जीवन से इस पर तकरार हुई है;
मुझको जीवन से बदले में आह मिले.

मैं ने कब चाहा पंख और ख्वाब गगन के;
मैं ने चाहा टूटे दिल को बस एक राह मिले.

जब भी मैं ने यह सवाल किया जीवन से;
बदले में एक और दर्द और एक आह मिले.

Friday, 14 September 2012

मैं कौन हूँ, कहाँ हूँ


शाम के धुंधले प्रकाश में
मेरा खुद से बातें करना
दीवारों को छू कर खुद का होना, महसूस करना
महसूस करना कि श्वासों की निरंतरता ही प्राणों की गति का प्रमाण है.
मेरा अस्तित्व तो अनुभूतियों की गहराई में उतर कर, 
शून्य के अस्तित्व को चुनौती दे रहा है.
तुम नहीं समझ सकते मैं कहाँ हूँ,
क्यों कि तब मुझे भी नहीं पता होता, मैं कौन हूँ, कहाँ हूँ.