Monday, 30 May 2011

मैं पतंग

हमारे मित्र निशांत जी ने आग्रह किया ................"हो सके तो कभी उस मज़बूरी को भी कविता में बयाँ कीजिए, जहाँ पतंगे आसमान में उड़ने से थक हार कर जमीन में अपने उड़ाने वाले हाथों में लौटना चाहता है, लेकिन अमूमन समय की आंधी में उसकी परिणीति कट कर किसी कोने में विलुप्त हो जाने में होती है।" ये गीत उनके लिए ........

मैं पतंग तूँ मुझको उड़ाये;
दूर मुझे ले जायें हवाएं
प्रेम डोर से तुझसे जुड़ी मै;
सोचूँ कब वापस तूँ बुलाये

मैं जो तुझसे मिलना चाहूँ;
डोर तूँ ख़ीचे बस यही उपाय
डोर कहीं कट जाए अगर तो;
वक़्त के झोकें दूर ले जायें

तेरे एक इशारे पर मैं;
इठलाउँ इतराउँ हाय!
दूर मैं तुझसे हवा से लड़ती;
दर्द मेरा कोई समझ पाये

मुकद्दर


वो मुकद्दर में है नहीं मेरे;
कह पाया हम तो हैं तेरे

यूँ खामोश चेहरा वो मुझे दीखता है;
जैसे आइना सामने पड़ा हो मेरे

शाम के साथ मै भी ढलता हूँ;
वो रौशनी जो साथ नहीं है मेरे

य़ू तो कट ही जायेगा जिंदगी का सफ़र;
मौत जायेगी चुपके से जहन में मेरे

मै सोचता था पा लूं मै मरने का सुकून ;
कि मौत आये पर हो उनकी बाँहों के घेरे

Sunday, 22 May 2011

विरह गीत


काँहें गये परदेश सजनवा ;
मनवा मोरा अधीर भवा।
देख रहे नित राह सजन के;
नयनन से नित नीर बहा।
काहें गये परदेश सजनवा.....

खोज रही मैं प्रीत की डारी;
मन चिरिया को ठौर कहाँ।
देखत बिम्ब द्वार पर जैसे;
मन सोचे है आये सजनवा।
काहें गये परदेश सजनवा.........

सिथिल नयन और याद सजन के;
मन छाये कारे दुःख के बदरवा।
घर सारा अँधियारा जग है;
तुमको कहाँ अब ढूढे नयनवा।
काहें गये परदेश सजनवा..........

बरस पड़े फिर टूट के बादल;
जब घर आये लौट सजनवा।
लिपट गये तन प्रेम में आतुर;
जैसे मिले हों नदी सगरवा।
अब तो यही मैं माँगू रब से;
अब न जाये परदेश सजनवा .....

Friday, 20 May 2011

दर्द के फूल


ख्वाब अक्सर ही टूट के बिखर जाते हैं;
दिल को हम दर्द के फूलों से ही सजाते हैं।

रास्ता ग़म को भुलाने का है नहीं कोई;
अश्कों के जाम से हम ये ख़ुशी मनाते हैं।

मेरी आँखों का ये पैमाना छलक जाता है;
रात भर आँखों में यूँ अश्क आते जाते हैं।

तुम नहीं होते हो तो तुम्हारी याद सही;
हमसफ़र बनकर मेरा साथ जो निभाते हैं।

Wednesday, 18 May 2011

हाथ मेरे ये ग़म का खज़ाना है लगा


हाथ मेरे ये ग़म का खज़ाना है लगा,
दुनिया मुझको ये एक वीराना है लगा।

दिल की है बात तो समझना भी मुश्किल है,
रोग मुझको जो मोहब्बत का पुराना है लगा।

मंजिले और भी थीं ग़म--जिंदगी के लिये,
पर मेरे दिल पे ही ग़म का निशाना है लगा।

समंदर है, साहिल है, है लहरों का सफ़र,
साहिल--दिल पर यादों का आना है लगा।


(कुछ निजी व्यस्तताओं और ब्लॉग की अव्यवस्था के कारण यह पोस्ट लगाने में कुछ देर हो गया,
इसके लिए माफ़ी चाहूँगा)

Tuesday, 3 May 2011

कुछ यादें


एक एहसास यही दिल मे बसाके रखिये,
मुझे अपना ना सही, गैर बनाकर रखिये.
मै जो नज़दीक नहीं तो दूर ही वाज़िब,
कु्छ नही हूँ, मुझे कुछ तो बनाकर रखिये.

कौन समझेगा, ये दिल के जख्म है गहरे,
उनको बस दिल में छुपाकर रखिये.
कौन समझेगा अब इन अश्को की कीमत,
है ये मोती आँखो में छुपाकर रखिये.

हौसला है तो गुजर जायेगा अँधेरो का सफ़र,
रोशनी होने तक खुद को बचाकर रखिये.
रात कट जायेगी यादों का सहारा तो है,
सुनहरी यादों को दिल मे बसाकर रखिये.