पथ का राही
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Monday, 11 April 2011
मुक्तक
कितनी ही बातें तुझसे छुपा के बैठा हूँ,
एक नज़र तुझसे चुराके
बैठा
हूँ,
देखना तुझको मयस्सर होता है जमाने के बाद,
फिर भी तुझमें ही दिल लगाके बैठा हूँ।
1 comment:
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
11 April 2011 at 20:03
अब हुई न बात!
हिन्दी के ब्लॉग में तो हिन्दी में ही लिखना चाहिए!
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अब हुई न बात!
ReplyDeleteहिन्दी के ब्लॉग में तो हिन्दी में ही लिखना चाहिए!