Monday, 28 January 2013

ऐसा कोई तुमको मिले जो ख्वाबों में रंग भर दे

तुमसे कह दें सारी बातें, वो बातों ही बातों में;
और समझ ले सारी बातें बस आँखो ही आँखों में.

ऐसा कोई तुमको मिले जो ख्वाबों में रंग भर दे;
दे उड़ान चाहतों को और भर ले तुमको बाहों में.

तुमको कोई ऐसा मिले जो हो सागर के जैसा;
दरिया से सागर बन जाओ होकर उसकी बाहों में.

एक नया ख्वाब बुन लो मिल कर उसको एक पल को ;
लहरा के फिर झूम ही जाओ तुम जीवन की राहों में.

Tuesday, 22 January 2013

हो कितना भी गहरा तिमिर

"प्रेम जीवन के एक सबसे सुखद और अनमोल अनुभवों में से है और किसी द्वारा प्रेम किये जाने की अनुभूति तो स्वार्गिक है".   - डा. अरविंद मिश्रा 

इसी बात को आगे  बढ़ाते हुए...........

प्रेम किये जाने की अनुभूति तो स्वार्गिक है .....इसका दूसरा पहलू ये है कि.......... किसी के प्रेम मे होने की अनुभूति नैसर्गिक अनुभूति है जो उत्तरोत्तर और प्रगाढ़ होती जाती है. किसी द्वारा प्रेम किये जाने की अनुभूति नैसर्गिक नहीं हो सकती क्यों की यह बात दूसरे व्यक्ति पर निर्भर है, और जिन बातों की निर्भरता किसी व्यक्ति पर हो वह नैसर्गिक नहीं हो सकती परंतु स्वयं को प्रकृति का हिस्सा जानते हुए जो आपके हृदय में किसी के लिए प्रेम की परिणिति होती है वह आपको अनंत से जोड़ती है.

स्वर्गिक सुख की अपनी सीमाये है, नैसर्गिक सुख अनंत है.


हो कितना भी गहरा तिमिर
तोड़ ही देती है अहंकार
जब लाती है उषा
सूर्य की किरण निर्विकार.

दिन कितना भी हो नीरस
बन ही जाता है सरस
जब शाम के आने के साथ
आये आमराइयों से कोकिल रस.

समंदर से अलग लहरों का करुण क्रंदन
एक दर्द का स्पंदन
और फिर होता है
सागर से मिलकर ही शांत मन.

उम्र के किसी पड़ाव पर सयास
हो उदास मन अनायास
आनंदित होता है मन फिर
जब हो हृदय प्रेम परिणति आभास.

Monday, 21 January 2013

झूठ का कद यूँ जो बढ़ता जायेगा


झूठ का कद यूँ जो बढ़ता जायेगा;
सच बेचारा तो छला ही जायेगा.

पूंछते हो तुम मुक़द्दर मेरे देश का;
राम जाने किस तरफ को जायेगा.

और ले लिया जो नाम मैने राम का;
सांप्रदायिक कहा मुझको जायेगा.

टिकी हैं लाशों पर जिनकी गद्दियाँ;
मंत्री मुख्य प्रधान कहा जायेगा.

देश का दुर्भाग्य फिर ये देखिये;
कातिल कोई नेता भी बन जायेगा.

Saturday, 19 January 2013

सागर से गहरा होता है


सागर से गहरा होता है;
दिल का जो रिश्ता होता है।

खोजोगे फिर शहर-शहर तुम;
यहाँ कौन किसका होता है।

जान ही लोगे, देर से लेकिन;
और यहाँ क्या क्या होता है।

हमने जो सोचा होता है;
अंजाम कहाँ वैसा होता है।

हमने भी देखें हैं दुश्मन;
इंसान का इंसान होता है।

क्या खोज रहे हो बाज़ारों में;
यहाँ तो बस सौदा होता है।

तुमको मुक़द्दर चाहिये अपना;
और यहाँ पैसा लगता है।

तुम मुफ़लिस हो मेरे 'मुसाफिर';
प्यार कहाँ माँगे मिलता है।