Friday, 30 December 2011

जिंदगी का राज


मुझे ये जिंदगी का राज समझ आया करीने से,
कि खुश्बू फूल की आती है मेहनत करके जीने से।

तुम्हे कतरा कह कर लोग ठुकराए तो भी क्या,
समंदर बनके निकले मोहब्बत,बूँद के ही सीने से.

रोटी बनती नही है रुपये दौलत या नगीने से.
आगर न सीँचे मिट्टी आदम का घीसू पसीने से।

घुटन सी एक मैं महसूस करता हूँ शहरों मे,
यहाँ अब दिन गुज़रते है बरसों या महीने से.

चलो रुख़ कर लो 'मुसाफिर' गावों की तरफ फिर से,
मिला है क्या तुम्हे इस शहर मे घुट घुट के जीने से.