Sunday 26 January 2014

इस दुनियावी सफ़र में अब रखा क्या है.

सफ़र है जिंदगी, और यहाँ होता क्या है;
जो भी मिलता है, वो भी मिलता क्या है.

जिंदगी के सफ़र पर निकले हो तुम;
सिवा मौत के अपना पराया क्या है.

एक मोहब्बत ही तो है दिल मे तेरे;
लूटा दे यूँ भी पास तेरे रखा क्या है.

समझना था राह की मुश्किलों को तुम्हें;
और समझना था की ये दुनिया क्या है.

घर को लौट ही चल 'मुसाफिर' अब तूँ;
इस दुनियावी सफ़र में अब रखा क्या है.

3 comments:

  1. रचना को ज्यादे से ज्यादे लोगों तक पहुँचाने के लिए बहुत बहुत आभार|
    प्रणाम स्वीकार करें.

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